यूँ ही कभी कभी

Sometimes, I write about how much I don’t want to write. Sometimes, I am unable to write because I have just finished a beautiful book.  Sometimes, it’s just the good old writer’s block. Confused?

These are just few of the umpteen extremities my life goes through as a writer. Here is the result of an attempt to put it all on paper.

 

इन किताबों के तमाम समुन्दर के बीच
कतरे सा महसूस होता है कभी कभी ।
इस दुनिया के साफ़ सुथरे तरीको के बीच
मैला सा महसूस होता है कभी कभी ।

झट पलटकर पहुँच जाती हूँ जब कागज़ी किरदारों के बीच,
कहानी खत्म होते ही अकेला महसूस होता है कभी कभी ।
किताबों की नपी-तुली कठिनाइयॉं देखकर
ज़िंदगी से भाग जाने का मन होता है कभी कभी ।

कभी कभी सोचती हूँ कि लिखना छोड़ दूँं,
तथ्य और कल्पना के सब तार तोड़ दूँं ।
फिर कहीं किसी कोने से झाँकती है एक कलम
जिसे छूते ही नज़रें तलाशती है कोई कोरी सतह
और पलक झपकते ही भर जाते है जानें कितने पन्ने
बस इसी बारे में कि मैं अब लिखना नही चाहती ।

कभी कभी तो खुद ही बदलती है ये कलम पलों को अफ़सानों में,
और शब्द ढूँढ़नें में ही स्याही सूख जाती है कभी कभी ।
मेरी परछाई जो मेरी कलम में बन्द रहती है
बिखरे पन्नो के बीच से मुझे आवाज़ लगाती है कभी कभी ।

 

Copyright © Neha Sharma

19 thoughts on “यूँ ही कभी कभी

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  1. utkrisht lekhan…..jitna bhi tarif karun kam hai…….
    kabhi syahi sukh jaati hai,
    kabhi kagaj kam pad jaati hai,
    dagabaaji to duniya ka dastur hai,
    ai jindgi ko tun bhi chhod jaati hai.

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